shayari on gair relationship | गैर रिश्तो पर शायरी इन हिंदी

गैर शायरी :- हेलो दोस्तों तो कैसे है आप सभी उम्मीद है बढ़िया होंगे दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आये है गैर शायरी।

दोस्तों गैर हम उसे कहते है जिसे हम नहीं जानते और हम उससे अनजान है जी हां दोस्तों गैर शब्द एक अनजान व्यक्ति के लिए आता है दोस्तों हमारी यह शायरी आप सभी को बेहद पसंद आने वाली है।

दोस्तों जब हम स्कूल, कॉलेज, जाते है तो हमारी एक नई लाइफ शुरू होती है और हम ऐसे साथियो के साथ हमारी कॉलेज और स्कूल लाइफ शुरू करते है जो हमारे लिए अनजान है और हम धीरे धीरे अच्छे दोस्तों के साथ हमारी लाइफ शुरू हो जाती है जो कभी गैर थे।

हम जब किसी रिलेशनशिप को शुरू करते है चाहे वह दोस्ती का रिश्ता, प्यार का रिश्ता या कोई सा भी रिश्ता हो वह हमारे लिए पहले एक अनजान / गैर ही होता है।

तो आज हम उस रिश्ते को जो आपके लिए अनजान है के लिए हम अनजान रिश्तो पर शायरी लेकर आये है तो चलिए दोस्तों शुरू करते है बिना किसी देरी के गैर रिश्तो पर शायरी


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shayari on gair relationship|गैर रिश्तो पर शायरी इन हिंदी

ho raha hai mere liye vo gair..
sochta hu kese jiyunga uske bagair..

हो रहा है मेरे लिए वो गैर..
सोचता हूं कैसे जिऊंगा उसके बगैर..

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apni galtiyo ko aasani se bhul jaate hain..
gairon ko nasihat log badi acchi dete hain..

अपनी गलतियों को आसानी से भूल जाते हैं..
गैरों को नसीहत लोग बड़ी अच्छी देते हैं..


aadhe raaste me ho gaya vo gair..
krana chahta jise me ishq ki sair..

आधे रास्ते में हो गया वो गैर..
कराना चाहता जिसे मैं इश्क की सैर..


ishq me mujh par julm kar baithe..
aasani se vo gairo ko dil de baithe..

इश्क में मुझ पर जुल्म कर बैठे..
आसानी से वो गैरों को दिल दे बैठे..


गैर की बाहो में शायरी

apno se na karna kabhi bair..
aakhir vo nahin hote koi gair..

अपनों से न करना कभी बैर..
आखिर वो नहीं होते कोई गैर..

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apna samajh kar hum the jin pr marne lage..
gair-matlab ki baate vo aajkal karne lage..

अपना समझ कर हम थे जिन पर मरने लगे..
गैर-मतलब की बातें वो आजकल करने लगे..


insaaniyat nibhate raho nahi hai yahan koi gair..
samjho is baat ko kudrat barsaye koi keher..

इंसानियत निभाते रहो नहीं है यहां कोई गैर..
समझो इस बात को कुदरत बरसाए कोई कहर..


rehne lage hain is dil ke bagair..
ab mere liye ho gaye vo gair..

रहने लगे हैं इस दिल के बगैर..
अब मेरे लिए हो गए वो गैर..


samajhne lagi hai jabse mujhe vo gair..
lagta hai pina padega mujhe ab zeher..

समझने लगी है जबसे मुझे वो गैर..
लगता है पीना पड़ेगा मुझे अब जहेर..


गैरो को अपना बनाना शायरी

bewafa ne mujhe tanhaiyon se milaya..
aansu pochhne kisi gair ko bulaya..

बेवफा ने मुझे तन्हाइयों से मिलाया..
आंसू पोछने किसी गैर को बुलाया..


kitna bhi samjhaau use manti hai vo mujhe gair..
baat ko samjhane ab kya padu mai uske pair..

कितना भी समझाऊं उसे मानती है वो मुझे गैर..
बात को समझाने अब क्या पड़ूं मैं उसके पैर..


jisko mene dil diya..
aaj vo gairo ka ho gaya..

जिसको मैंने दिल दिया..
आज वो गैरों का हो गया..


jindagi me unke bina nahi tha koi aur..
kab socha tha maine vo yu ho jayenge gair..

जिंदगी में उनके बिना नहीं था कोई और..
कब सोचा था मैंने वो यूं हो जाएंगे गैर..


mohobbat me mujhe anokha tohfa de gaye..
gairo se dil lagakar vo bewafa ho gaye..

मोहब्बत में मुझे अनोखा तोहफा दे गए..
गैरों से दिल लगाकर वो बेवफा हो गए..


धोकेबाज शायरी

jise sunana chahta tha apne likhe sher..
vo begairat, na jaane kaise ho gaye mujhse gair..

जिसे सुनाना चाहता था अपने लिखे शेर..
वो बेगैरत, न जाने कैसे हो गए मुझसे गैर..


bewafai kar jo tum ho gaye ho mujhse gair..
kaise hogi batao ab is tanhai ki sahar..

बेवफाई कर जो तुम हो गए हो मुझसे गैर..
कैसे होगी बताओ अब इस तन्हाई की सहर..


is tarah mere dil se gair ho gaye..
pyar me mujhe jaise vo jahar de gaye..

इस तरह मेरे दिल से गैर हो गए..
प्यार में मुझे जैसे वो जहर दे गए..


meri najro se dur vah ja pahuche..
gairo se milne magar ja pahuche..

मेरी नजरों से दूर वह जा पहुंचे..
गैरों से मिलने मगर जा पहुंचे..


ban gaya hun ab to unke pairo ka kanta..
thes aisi lagi dil ko jaise mujhe gairon me banta..

बन गया हूं अब तो उनके पैरों का कांटा..
ठेस ऐसी लगी दिल को जैसे मुझे गैरों में बांटा..


गैर जिम्मेदार शायरी

gairo ki mohobbat me koi nahi khota..
unka shor sunane wala koi nahi hota..

गैरों की मोहब्बत में कोई नहीं खोता..
उनका शोर सुनने वाला कोई नहीं होता..


jindagi me jaise zahar ban jaate hain..
apne hi jab gair ban jaate hain..

जिंदगी में जैसे जहर बन जाते हैं..
अपने ही जब गैर बन जाते हैं..


na jaane veh kyo mujhse gair ban gai..
narazgi uski ab keher ban gai..

ना जाने वह क्यों मुझसे गैर बन गई..
नाराजगी उसकी अब कहर बन गई..


gairon ke sath hai usne apni jindagi basai..
aankho me meri fir bhi uski tasvir samayi..

गैरों के साथ है उसने अपनी जिंदगी बसाई..
आंखों में मेरी फिर भी उसकी तस्वीर समाई..


ab chahe marne me mujhe der ho jaaye..
aitraaz nahi mujhe ki vo gair ho jaaye..

अब चाहे मरने में मुझे देर हो जाए..
एतराज नहीं मुझे के वो गैर हो जाए..


अपने बैगाने शायरी

pyar me sapno ko veh bikher jaate hain..
kaise kare bharosa, jo gair ban jaate hain..

प्यार में सपनों को वह बिखेर जाते हैं..
कैसे करें भरोसा, जो गैर बन जाते हैं..


ruth kar mujhse veh ho gaye he gair..
jindagi ki mangne laga hu me khair..

रूठ कर मुझसे वह हो गए हैं गैर..
जिंदगी की मांगने लगा हूं मैं खैर..


rota rehta hai ye dil subeh ho ya dopeher..
koi nahi hai tere siva jab tu ho gaya hai gair..

रोता रहता है ये दिल सुबह हो या दोपहर..
कोई नहीं है तेरे सिवा जब तू हो गया है गैर..


tod kar mera dil jo usne dher kar diya hai..
kisse karu shikayat ke vo gair ho gaya hai..

तोड़ कर मेरा दिल जो उसने ढेर कर दिया है..
किससे करूं शिकायत के वो गैर हो गया है..


गैर शायरी

kar rahe the jo mera hone ka dava..
gair hi the weh najar aa gaya dikhava..

कर रहे थे जो मेरा होने का दावा..
गैर ही थे वह नजर आ गया दिखावा..


dhundhne gaya tha use me kota aur ajmer..
kambakht ab kaha milega, jo ho gaya hai gair..

ढूंढने गया था उसे मैं कोटा और अजमेर..
कमबख्त अब कहां मिलेगा, जो हो गया है गैर..


likhta rehta hun uska naam har deewar, har munder..
magar vah to nahin raha mera jo ho gaya hai mujhse gair..

लिखता रहता हूं उसका नाम हर दीवार, हर मुंडेर..
मगर वह तो नहीं रहा मेरा जो हो गया है मुझसे गैर..
मुंडेर – दीवार का ऊपरी भाग


dil par bewafai ke ghaav kar gaye..
gairo ke sath vo har raah chal diye..

दिल पर बेवफाई के घाव कर गए..
गैरों के साथ वो हर राह चल दिए..